Sunday, August 14, 2016



स्वप्न सुंदरी 

तुम हो मेरी स्वप्न सुंदरी जीवन की आधार ,
चाहूँ तुमको गले लगाना आ जाओ एक बार,

तुम बिन तड़पे ये मन ऐसे जैसे चंदा बिना चकोर,
तेरे बिन न सूझे कुछ भी तू दिखती चहु ओर,

चंचल नयन हिरन के जैसे मुख है कमल समान,
कंठ सुराही अधर ज्यों दाड़िम कमर है तीर समान,

वाणी में हैं रस इतना कि मधु फीका पड़ जाये ,
तेरे मुख आभा के आगे सूरज लज्जित हो जाये, 

जब स्वतंत्र करे केशों को ऐसे लगे हैं छाये बादल ,
होकर मग्न जहाँ नृत्य करें नयन मयूर संपादल,

कठिन हुई प्रतीक्षा अब तो आ जाओ इस पार,
चाहूँ तुमको गले लगाना आ जाओ एक बार.


शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता 
(१४-अगस्त-२०१६)

Saturday, January 23, 2016

वफ़ा का बाज़ार


वफ़ा का बाज़ार

वफ़ा के भाव में खरीद ले मुझको ,
रोज़ दिल का मेरे ऐसा बाज़ार नही लगता,

सुना है हुश्न का शहरों में बाजार गरम है,
वफ़ा के दाम इतने गिर गए की खरीदार नही मिलता,

जो मेरी मुफलिसी को भूल के दिल में उतर जाये ,
मोहब्बत को समझने वाला वोह किरदार नही मिलता,

शक्ल को देखके लगा लेता हर शख्श अंदाज़ा ,
जो मेरी रूह को समझे कहीं दिलदार नही मिलता .

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(२३ -०१ -२०१६)

इंतज़ार





इंतज़ार

कुछ ख्याल भेज दे अपने की ये रातें कटती नहीं हैं,
आँखों से धुंध तेरी याद की छटती नहीं है,
जहाँ कुछ शाम को होता हैं जगमग शहर सारा,
अँधेरी रात मेरे दिल से क्यों छटती नहीं है,

धड़कता दिल है मेरा जलजले सा आजकल क्यों,
क्यों खाई दरमियान अपने ये क्यों अब पटती नहीं है,
आईना क्यों है दिखाता धुंधला अक्स मेरा,
चमक किरदार में मेरे उसे दिखती नहीं है ,

जलके खाक होता जा रहा है वज़ूद मेरा ,
ये धड़कन और तेरे बिन कहीं चलती नहीं हैं,
साँसें भी हैं थमती जा रही हैं जुड़ा होके तुमसे ,
तमन्ना मिलने की तुमसे क्यों ये थमती नहीं है,

वक़्त से तुम मेरे पास जाना क्योंकि ,
मेरी अब जिंदगी मुझसे कुछ और संभलती नहीं है .

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता

(२३ -०१ -२०१६)

Friday, November 14, 2014

प्रेम अभिलाषा


प्रेम अभिलाषा 




तुम हो अभिलाषा इस मन की पर हो सागर के पार,
कभी तो आकर ह्रदय लगा लो जीवन हो साकार,

तुम बिन फीके रंग फूल के नीरस ये मधुमय मास,
कोयल भी क्यों चुप हैं बैठी लगे भूली सुर की प्यास,
बेल बिटप पल्लव उदास हैं, रूका हुआ अलि कली का रास,
इन सबको जीवन दे सकता, तुम्हारे मुखमंडल का हास,
यूँ लगता मेरे मन उपवन से रूठी बसंत बहार,
 कभी तो आकर ह्रदय लगा लो जीवन हो साकार,

सृष्टि तो है चल रही, पर मेरा जीवन ठहर गया
सुबह समय पर होती है, पर जाने कहाँ तमहर गया
समय रूका हुआ है मानो, कि बढे तभी जब तुम आओ
मेरे जीवन की घडियाँ ही कितनी, जो हैं आओ, संग बिताओ
हम दोनो ही तो हैं, इक दूजे के जीवन का सार,
कभी तो आकर ह्रदय लगा लो जीवन हो साकार,

बिना तुम्हारे प्रिये दरस के कैसे, पूर्ण करूँ मैं कबिता ,
बिना तुम्हारे प्रेम के प्रिये ना बहे काव्य की सरिता,
आके दरस नयन को मेरे दे दो प्रिये एक बार, 
पल पल जगत है ढलता रहता, पर अजर है मेरा प्यार,

हृदय चाहता तुमको पाना, तुम बैठी सागर उस पार
तुम आओ मुझे कंठ लगाओ, जीवन हो साकार।




शैलेन्द्र गुप्ता 
(१५-नबम्बर-२०१४)

Saturday, September 20, 2014

जिंदगी



                                                                 जिंदगी 


क्यों इतने इम्तिहान लेती है तू जिंदगी,
 सब्र  कर एक दिन तुझे मैं दिखलाऊंगा,
मुझे तू जिंदगी कम आंकने की भूल न कर,
मैं अपनी कोशिशों से जल्द ही मुस्काउंगा, 

सख्त हालत कितने भी दिखा मुझको भले पत्थर बना दे,
बड़ी संजीदगी से तेरे हर सितम को अपनाउंगा,
मुझे ना चाहिए तुझसे दुनिया के खजाने,
मैं अपनों की दुआओं से ही बस पल जाऊंगा,

मत सुना चाँद सितारों की कहानी मुझको,
कोई बच्चा नही हूँ मैं जो यूँ ही बहल जाऊंगा,
मुझे आता है लड़ लड़ के किस्मत बदलना,
जरा तू सब्र कर ले मैं खुद ही संभल जाऊंगा,

बड़ा ही आ रहा है मज़ा मुझे लड़ने में तुझसे,
कड़े कर  इम्तिहान तू और मैं उतना मुस्कराऊंगा,
मुझे तू जिंदगी कम आंकने की भूल न कर,
मैं अपनी कोशिशों से जल्द ही मुस्काउंगा, 

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता 
(२०- सितम्बर-२०१४)

Friday, July 4, 2014


प्रेम बाजार

 तुम्हारी यादें ऐसी हैं जैसे कोई तेज हवा के थपेड़ों में घबराई तितली की तरह,
मेरे मन के किसी कोने में बड़ी सिद्दत से चिपक जाती है,
पर इन दिनों मैं कुछ आने वाले दिनों को सोच के परेशान हूँ,

जब प्रेम बाजार में कुछ सामान बनके रह जायेगा,
लैला मजनू,हीर रांझा एक ब्रांड नेम बन रह जायेगा,
दौलत के मानकों में बिकेगा प्रेम,
जतनी गहरी जेब उतना लम्बा प्रेम,

विस्वास और आत्मीयता का कुछ मोल न रहेगा,
टेर्रिफ के जैसे अलग अलग वैलिडिटी पे शायद,
तब लोग प्रेम बस फेसबुक और सोशल नेटवर्क पे ही दिखाये,
हो सकता है की नज़दीक बैठी यादें धुंधली पद जाये,

लेकिन मैं फिर भी तेरी यादों में एक कविता लिखूंगा,
बस ये बतलाने के लिए कि...... 
एक कवि ने रोटी की शर्त पे प्रेम बेचने से मना कर दिया 


शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता 
(०५-जुलाई -२०१४ मध्य रात्रि )

Wednesday, April 30, 2014

कभी तो

 
 
कभी तो
 
 
काश कभी तो उसकी एक झलक मिल जाये,
जो मेरे इस बीमार दिल की दवा बन जाएं,
कभी तो सुनाई दे मेरी धडकन उसको,
कभी तो मेरी हर अनसुनी दुआ कि सुनवाई हो जाये,
बड़ी मुद्दत गुजार दी ,किया दीदार दूर से,
कभी उसकी नज़र भी देख ले तो बात बन जाएं,
मैं अक्सर रात मे तेरे सपनें सजोंता हूँ,
जो ये सच मे बदल जाये तो यारा बात बन जाये,
" ऐ चाँद तुझमें मुझे अपना मेहबूब नज़र आता है,
पर ये भी सच है वोह तुझसा दूर नज़र आता है... "

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(३०-अप्रैल-२०१४)