स्वप्न सुंदरी
तुम हो मेरी स्वप्न सुंदरी जीवन की आधार ,
चाहूँ तुमको गले लगाना आ जाओ एक बार,
तुम बिन तड़पे ये मन ऐसे जैसे चंदा बिना चकोर,
तेरे बिन न सूझे कुछ भी तू दिखती चहु ओर,
चंचल नयन हिरन के जैसे मुख है कमल समान,
कंठ सुराही अधर ज्यों दाड़िम कमर है तीर समान,
वाणी में हैं रस इतना कि मधु फीका पड़ जाये ,
तेरे मुख आभा के आगे सूरज लज्जित हो जाये,
जब स्वतंत्र करे केशों को ऐसे लगे हैं छाये बादल ,
होकर मग्न जहाँ नृत्य करें नयन मयूर संपादल,
कठिन हुई प्रतीक्षा अब तो आ जाओ इस पार,
चाहूँ तुमको गले लगाना आ जाओ एक बार.
शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(१४-अगस्त-२०१६)