Saturday, January 23, 2016

इंतज़ार





इंतज़ार

कुछ ख्याल भेज दे अपने की ये रातें कटती नहीं हैं,
आँखों से धुंध तेरी याद की छटती नहीं है,
जहाँ कुछ शाम को होता हैं जगमग शहर सारा,
अँधेरी रात मेरे दिल से क्यों छटती नहीं है,

धड़कता दिल है मेरा जलजले सा आजकल क्यों,
क्यों खाई दरमियान अपने ये क्यों अब पटती नहीं है,
आईना क्यों है दिखाता धुंधला अक्स मेरा,
चमक किरदार में मेरे उसे दिखती नहीं है ,

जलके खाक होता जा रहा है वज़ूद मेरा ,
ये धड़कन और तेरे बिन कहीं चलती नहीं हैं,
साँसें भी हैं थमती जा रही हैं जुड़ा होके तुमसे ,
तमन्ना मिलने की तुमसे क्यों ये थमती नहीं है,

वक़्त से तुम मेरे पास जाना क्योंकि ,
मेरी अब जिंदगी मुझसे कुछ और संभलती नहीं है .

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता

(२३ -०१ -२०१६)

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