Sunday, January 5, 2014

माँ

 
अक्सर रातों में जग जग कर मुझको वोह थपकी देती थी,
खुद थी वोह रातों जगती,पर मुझको सपने देती थी,
 
खुद सहती थी वोह विकट धूप हमको आँचल की छाँव दिए,
न खाती थी अपना भोजन वोह हमको क्षुदा मुक्त किए,
अब भी जब भूखा सोता हूँ,जब रातों को नींद ना आती है,
आके थपकी दे दे तू माँ,मुझे तेरी याद सताती है,
 
है याद मुझे जब बचपन में जब चौक के मैं जग जाता था,
चूल्हे पे खाना जलता छोड़ तू मुझे चुपाने आती थी,
जब तक मैं सो नहीं जाता था,तू खड़ी पालना हिलाती थी,
अक्सर मेरे सोने के बाद ही तू देर से खाना खाती थी,
 
जब आता समय परीक्षा का,मुझसे ज्यादा तू जगती थी,
और मेरे अच्छे नंबरों कि भगवान् से मन्नत करती थी,
जब नंबर कुछ कम रह जाते तो पापा कि डांट से बचवाना,
बेटा मेरा अब्बल आएगा पापा को हर बार ये समझाना,
मेरी हर गलती को ओ माँ कैसे तू सदा छुपाती है,
पर जब मैं अब गलती करता हूँ,मुझे तेरी याद सताती है,
 
मैं ज्यों ज्यों हुआ बड़ा थोड़ा,मेरी हर ज़िद तूने पूरी की,
अपने बचे चुराए पैसों से मेरी हर ख्वाहिश पूरी की,
मैं कैसी भी गलती करता तू करके मांफ मुस्काती है,
पर अब जब गलती करता हूँ,क्यों आके न गले लगाती है,
 
मर्ज़ी की शादी ,मर्ज़ी का घर,विदेश में जाके रहने की ज़िद,
कहके कि बड़ा हो गया हूँ मैं अपनी तरह जीने कि ज़िद,
मुझको खुदसे रखके दूर तू कितना दुःख रही झेलती माँ,
कि कभी न उफ़ न करी शिकायत बस हसके दुआ ही देती माँ,
 
जब रही थी गिन अंतिम साँसें पापा को अक्सर ये कहना,
मत करना फोन बिजी होगा,किसी मीटिंग के बीच होगा,
वोह करना ज़िद सदा ये पापा से कि गर कभी अचानक मैं मर जाऊं,
तस्वीर मेरी कर देना मेल,डिस्टर्ब कहीं न कर देना,
बस लाल तेरा रहे सुखी सदा तू यही कामना करती रही,

तू बिरह वियोग सहती रही,मैं खुश हूँ ये कहती रही,
गयी छोड़ अकेला मुझको तू एक बार पुकारा तो होता,
कर मांफ मुझे तू जहाँ भी हो मैं बड़ा अभागा बेटा हूँ,
बिलकुल निराश मैं  लाचार यहाँ एक बार तू फिर से आ जाये,

फिर दे छाया तू आँचल कि दे थपकी मुझको सुलाये,
हर बार यही पश्चाताप कि पीड़ा आँख नम कर जाती है,
आके थपकी दे दे तू माँ,मुझे तेरी याद सताती है !
 
 
शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(०५-जनवरी -२०१४ )