Saturday, March 8, 2014

नारी -- त्याग और समर्पण की एक सबल मूर्ति

पहली बार जब आँख खुली तो,खुद को तेरी गोद में पाया,
तूने अपनी ममता से मुझ बच्चे को संसार दिखाया,
देर रात जब भी मैं रोया,तूने हसके गले लगाया,
रात रात जग थपकी देकर अपने कंधे पे मुझे सुलाया,
गिरते पड़ते इन क़दमों को चलना ऊँगली थाम सिखाया,

मेरी पहली टीचर बनके नैतिकता का पाठ पढ़ाया,
गलती की तो डांट लगायी,पर बाद में हसके गले लगाया,
दुनियादारी मुझे सिखाई,सही गलत के फर्क बताया,
 
दोस्त के जैसी बहिन मुझे दी,जिसने हर पल साथ निभाया,
कितना भी झगड़ा मैं करता,मेरी गलती पे मुझे मनाया,
अपना सब कुछ मुझसे बांटा,पर बदले में कुछ ना माँगा,
मेरी गलती खुदपे ले के,डांट से कितनी बार बचाया,
 
जब तू चली गयी बियाह के,खुद को बड़ा अकेला पाया,
इसी बीच प्रेयसी बनके किसी ने आके साथ निभाया,
बड़ा अधूरा लापरवाह सा, था इससे पहले मैं सच में,
पर तूने जीवन में आके मेरा हर पल हसी बनाया,
 
बदली ज़िन्दगी फिर एक बार,जब बनके जीवनसाथी तू आया,
अपने प्यार से तूने मुझको जीने का एक ढंग सिखलाया,
सुख-दुःख में परछाई बनके तूने हर पल साथ निभाया,
मेरी बुरी अादतों को भी हसके तूने गले लगाया,
मेरा घर था चारदीवारी,तूने इसमें परिवार बसाया,
 
दिया मुझे उपहार अनमोल, जब गोद में तेरी काया को पाया,
हो गया आज पूरा मैं जब पापा कहके मुझे बुलाया,
तूने खुद का अस्तित्व भुलाकर मेरे जीवन को सफल बनाया,
मेरे जीवन के हर पहलु को कितना सुन्दर सरल बनाया,
 
जाने कितने रूप में तूने,मेरा जीवन में साथ निभाया,
माँ,बहिन,प्रेयसी,पत्नी बनके हर मोड़ पे सदा प्रेम बरसाया,
आभार प्रकट करता हूँ मैं ईश हे !
जो तू नारी को धरा पे लाया।
 
शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(०८-मार्च -२०१४)