वफ़ा का बाज़ार
वफ़ा के भाव
में खरीद ले मुझको
,
रोज़ दिल का
मेरे ऐसा बाज़ार नही
लगता,
सुना है हुश्न
का शहरों में बाजार गरम
है,
वफ़ा के दाम
इतने गिर गए की
खरीदार नही मिलता,
जो मेरी मुफलिसी
को भूल के दिल
में उतर जाये ,
मोहब्बत को समझने वाला
वोह किरदार नही मिलता,
शक्ल को देखके
लगा लेता हर शख्श
अंदाज़ा ,
जो मेरी रूह
को समझे कहीं दिलदार
नही मिलता .
शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(२३ -०१ -२०१६)