Friday, November 14, 2014

प्रेम अभिलाषा


प्रेम अभिलाषा 




तुम हो अभिलाषा इस मन की पर हो सागर के पार,
कभी तो आकर ह्रदय लगा लो जीवन हो साकार,

तुम बिन फीके रंग फूल के नीरस ये मधुमय मास,
कोयल भी क्यों चुप हैं बैठी लगे भूली सुर की प्यास,
बेल बिटप पल्लव उदास हैं, रूका हुआ अलि कली का रास,
इन सबको जीवन दे सकता, तुम्हारे मुखमंडल का हास,
यूँ लगता मेरे मन उपवन से रूठी बसंत बहार,
 कभी तो आकर ह्रदय लगा लो जीवन हो साकार,

सृष्टि तो है चल रही, पर मेरा जीवन ठहर गया
सुबह समय पर होती है, पर जाने कहाँ तमहर गया
समय रूका हुआ है मानो, कि बढे तभी जब तुम आओ
मेरे जीवन की घडियाँ ही कितनी, जो हैं आओ, संग बिताओ
हम दोनो ही तो हैं, इक दूजे के जीवन का सार,
कभी तो आकर ह्रदय लगा लो जीवन हो साकार,

बिना तुम्हारे प्रिये दरस के कैसे, पूर्ण करूँ मैं कबिता ,
बिना तुम्हारे प्रेम के प्रिये ना बहे काव्य की सरिता,
आके दरस नयन को मेरे दे दो प्रिये एक बार, 
पल पल जगत है ढलता रहता, पर अजर है मेरा प्यार,

हृदय चाहता तुमको पाना, तुम बैठी सागर उस पार
तुम आओ मुझे कंठ लगाओ, जीवन हो साकार।




शैलेन्द्र गुप्ता 
(१५-नबम्बर-२०१४)

Saturday, September 20, 2014

जिंदगी



                                                                 जिंदगी 


क्यों इतने इम्तिहान लेती है तू जिंदगी,
 सब्र  कर एक दिन तुझे मैं दिखलाऊंगा,
मुझे तू जिंदगी कम आंकने की भूल न कर,
मैं अपनी कोशिशों से जल्द ही मुस्काउंगा, 

सख्त हालत कितने भी दिखा मुझको भले पत्थर बना दे,
बड़ी संजीदगी से तेरे हर सितम को अपनाउंगा,
मुझे ना चाहिए तुझसे दुनिया के खजाने,
मैं अपनों की दुआओं से ही बस पल जाऊंगा,

मत सुना चाँद सितारों की कहानी मुझको,
कोई बच्चा नही हूँ मैं जो यूँ ही बहल जाऊंगा,
मुझे आता है लड़ लड़ के किस्मत बदलना,
जरा तू सब्र कर ले मैं खुद ही संभल जाऊंगा,

बड़ा ही आ रहा है मज़ा मुझे लड़ने में तुझसे,
कड़े कर  इम्तिहान तू और मैं उतना मुस्कराऊंगा,
मुझे तू जिंदगी कम आंकने की भूल न कर,
मैं अपनी कोशिशों से जल्द ही मुस्काउंगा, 

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता 
(२०- सितम्बर-२०१४)

Friday, July 4, 2014


प्रेम बाजार

 तुम्हारी यादें ऐसी हैं जैसे कोई तेज हवा के थपेड़ों में घबराई तितली की तरह,
मेरे मन के किसी कोने में बड़ी सिद्दत से चिपक जाती है,
पर इन दिनों मैं कुछ आने वाले दिनों को सोच के परेशान हूँ,

जब प्रेम बाजार में कुछ सामान बनके रह जायेगा,
लैला मजनू,हीर रांझा एक ब्रांड नेम बन रह जायेगा,
दौलत के मानकों में बिकेगा प्रेम,
जतनी गहरी जेब उतना लम्बा प्रेम,

विस्वास और आत्मीयता का कुछ मोल न रहेगा,
टेर्रिफ के जैसे अलग अलग वैलिडिटी पे शायद,
तब लोग प्रेम बस फेसबुक और सोशल नेटवर्क पे ही दिखाये,
हो सकता है की नज़दीक बैठी यादें धुंधली पद जाये,

लेकिन मैं फिर भी तेरी यादों में एक कविता लिखूंगा,
बस ये बतलाने के लिए कि...... 
एक कवि ने रोटी की शर्त पे प्रेम बेचने से मना कर दिया 


शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता 
(०५-जुलाई -२०१४ मध्य रात्रि )

Wednesday, April 30, 2014

कभी तो

 
 
कभी तो
 
 
काश कभी तो उसकी एक झलक मिल जाये,
जो मेरे इस बीमार दिल की दवा बन जाएं,
कभी तो सुनाई दे मेरी धडकन उसको,
कभी तो मेरी हर अनसुनी दुआ कि सुनवाई हो जाये,
बड़ी मुद्दत गुजार दी ,किया दीदार दूर से,
कभी उसकी नज़र भी देख ले तो बात बन जाएं,
मैं अक्सर रात मे तेरे सपनें सजोंता हूँ,
जो ये सच मे बदल जाये तो यारा बात बन जाये,
" ऐ चाँद तुझमें मुझे अपना मेहबूब नज़र आता है,
पर ये भी सच है वोह तुझसा दूर नज़र आता है... "

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(३०-अप्रैल-२०१४)

Saturday, March 8, 2014

नारी -- त्याग और समर्पण की एक सबल मूर्ति

पहली बार जब आँख खुली तो,खुद को तेरी गोद में पाया,
तूने अपनी ममता से मुझ बच्चे को संसार दिखाया,
देर रात जब भी मैं रोया,तूने हसके गले लगाया,
रात रात जग थपकी देकर अपने कंधे पे मुझे सुलाया,
गिरते पड़ते इन क़दमों को चलना ऊँगली थाम सिखाया,

मेरी पहली टीचर बनके नैतिकता का पाठ पढ़ाया,
गलती की तो डांट लगायी,पर बाद में हसके गले लगाया,
दुनियादारी मुझे सिखाई,सही गलत के फर्क बताया,
 
दोस्त के जैसी बहिन मुझे दी,जिसने हर पल साथ निभाया,
कितना भी झगड़ा मैं करता,मेरी गलती पे मुझे मनाया,
अपना सब कुछ मुझसे बांटा,पर बदले में कुछ ना माँगा,
मेरी गलती खुदपे ले के,डांट से कितनी बार बचाया,
 
जब तू चली गयी बियाह के,खुद को बड़ा अकेला पाया,
इसी बीच प्रेयसी बनके किसी ने आके साथ निभाया,
बड़ा अधूरा लापरवाह सा, था इससे पहले मैं सच में,
पर तूने जीवन में आके मेरा हर पल हसी बनाया,
 
बदली ज़िन्दगी फिर एक बार,जब बनके जीवनसाथी तू आया,
अपने प्यार से तूने मुझको जीने का एक ढंग सिखलाया,
सुख-दुःख में परछाई बनके तूने हर पल साथ निभाया,
मेरी बुरी अादतों को भी हसके तूने गले लगाया,
मेरा घर था चारदीवारी,तूने इसमें परिवार बसाया,
 
दिया मुझे उपहार अनमोल, जब गोद में तेरी काया को पाया,
हो गया आज पूरा मैं जब पापा कहके मुझे बुलाया,
तूने खुद का अस्तित्व भुलाकर मेरे जीवन को सफल बनाया,
मेरे जीवन के हर पहलु को कितना सुन्दर सरल बनाया,
 
जाने कितने रूप में तूने,मेरा जीवन में साथ निभाया,
माँ,बहिन,प्रेयसी,पत्नी बनके हर मोड़ पे सदा प्रेम बरसाया,
आभार प्रकट करता हूँ मैं ईश हे !
जो तू नारी को धरा पे लाया।
 
शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(०८-मार्च -२०१४)

Tuesday, February 11, 2014

कुछ पल तेरे साथ

  
 
        कुछ देर और तेरी जुल्फ के साये में पनाह दे दे मुझको,
कुछ हसीं पल मैं इधर और बिताना चाहता हूँ,
बात होंठों से निकलेगी तो सुन लेंगे सब तो,
आँखों आँखों में कुछ राज़ बताना चाहता हूँ,
 
ज़िन्दगी है बड़ी बेवफा क्या यकीन करूँ,
आज कि शाम तेरे मैं संग बिताना चाहता हूँ,
उजाले दिन के बड़े तनहा गुजारे हैं मैंने,
एक हसीं शाम तेरे पहलू में बसर चाहता हूँ,
 
कितने नफरत के अँधेरे बसे हैं दुनिया में,
शम्मा-ए-मुहब्बत मैं हर कोने में जलाना चाहता हूँ,
सफ़र छोटा ही भले हो मेरी इस जिंदगी का,
पकड़ के हाँथ तेरा तय मैं करना चाहता हूँ,
 
आइना ख़ाक बतायेगा कि तू कितनी सुन्दर है,
मेरी आँखों में देख अक्स नज़र आएगा,
तू बहुत खूबसूरत महकता फूल है जिसको,
मैं अपने दिल के बगीचे में सजाना चाहता हूँ,
 
कुछ देर और तेरी जुल्फ के साये में पनाह दे दे मुझको,
कुछ हसीं पल मैं इधर और बिताना चाहता हूँ........

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(१२-फेब्रुबरी-२०१४)
 

Saturday, February 8, 2014

पिता

 
 
हे तात तुम मेरे जीवन का आधार हो,
मेरे जीवन की प्रबल शक्ति हो,
मेरे कुटुंब के सबल स्तम्भ हो,
तुम पालक तुम्ही पोषक प्रेम निर्झर विस्तार हो......
तुम्हीं परिवार का अनुशाशन हो ,
धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन हो,
तुम अप्रदर्शित अनंत प्यार हो,
परिवार के प्रतिपल स्नेह के सूत्रधार हो,
तुम रोटी तुम कपडा तुम ही मकान हो,
तुम ही हम छोटी चिड़ियों के अनंत आसमान हो,
हम हैं सुरक्षित गर तेरा सर पे हाँथ है,
तू नही तो मेरा बचपन बिलकुल अनाथ है,
अपनी इच्छाओं का करते रहे तुम त्याग,
परिवार की पूर्ति रहा सदा प्रथम ध्येय,
तू हम उंगली पकड़े बच्चों का सहारा है,
जो कभी खट्टा है तो कभी खारा है,
माँ तो कह लेती है दुखी हो तो रो लेती है,
पर तू छिपा लेता है अपने अंदर अवसादों के तूफान को,
तू तब भी ढृढ़ दिखा जब मैं घर से दूर गया,
तब भी जब दीदी विदा हुई,
पर हूँ अवगत इस बात से भी,
अश्रु की वर्षा रात हुई,
हे त्यागरूप हे सबल मूर्ति तेरा मैं वंदन करता हूँ,
हे परमपूज्य परमेश्ववर रूप मैं कोटिनमन तुम्हे करता हूँ....
 
शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(०८-०२-२०१४)
 

Sunday, January 5, 2014

माँ

 
अक्सर रातों में जग जग कर मुझको वोह थपकी देती थी,
खुद थी वोह रातों जगती,पर मुझको सपने देती थी,
 
खुद सहती थी वोह विकट धूप हमको आँचल की छाँव दिए,
न खाती थी अपना भोजन वोह हमको क्षुदा मुक्त किए,
अब भी जब भूखा सोता हूँ,जब रातों को नींद ना आती है,
आके थपकी दे दे तू माँ,मुझे तेरी याद सताती है,
 
है याद मुझे जब बचपन में जब चौक के मैं जग जाता था,
चूल्हे पे खाना जलता छोड़ तू मुझे चुपाने आती थी,
जब तक मैं सो नहीं जाता था,तू खड़ी पालना हिलाती थी,
अक्सर मेरे सोने के बाद ही तू देर से खाना खाती थी,
 
जब आता समय परीक्षा का,मुझसे ज्यादा तू जगती थी,
और मेरे अच्छे नंबरों कि भगवान् से मन्नत करती थी,
जब नंबर कुछ कम रह जाते तो पापा कि डांट से बचवाना,
बेटा मेरा अब्बल आएगा पापा को हर बार ये समझाना,
मेरी हर गलती को ओ माँ कैसे तू सदा छुपाती है,
पर जब मैं अब गलती करता हूँ,मुझे तेरी याद सताती है,
 
मैं ज्यों ज्यों हुआ बड़ा थोड़ा,मेरी हर ज़िद तूने पूरी की,
अपने बचे चुराए पैसों से मेरी हर ख्वाहिश पूरी की,
मैं कैसी भी गलती करता तू करके मांफ मुस्काती है,
पर अब जब गलती करता हूँ,क्यों आके न गले लगाती है,
 
मर्ज़ी की शादी ,मर्ज़ी का घर,विदेश में जाके रहने की ज़िद,
कहके कि बड़ा हो गया हूँ मैं अपनी तरह जीने कि ज़िद,
मुझको खुदसे रखके दूर तू कितना दुःख रही झेलती माँ,
कि कभी न उफ़ न करी शिकायत बस हसके दुआ ही देती माँ,
 
जब रही थी गिन अंतिम साँसें पापा को अक्सर ये कहना,
मत करना फोन बिजी होगा,किसी मीटिंग के बीच होगा,
वोह करना ज़िद सदा ये पापा से कि गर कभी अचानक मैं मर जाऊं,
तस्वीर मेरी कर देना मेल,डिस्टर्ब कहीं न कर देना,
बस लाल तेरा रहे सुखी सदा तू यही कामना करती रही,

तू बिरह वियोग सहती रही,मैं खुश हूँ ये कहती रही,
गयी छोड़ अकेला मुझको तू एक बार पुकारा तो होता,
कर मांफ मुझे तू जहाँ भी हो मैं बड़ा अभागा बेटा हूँ,
बिलकुल निराश मैं  लाचार यहाँ एक बार तू फिर से आ जाये,

फिर दे छाया तू आँचल कि दे थपकी मुझको सुलाये,
हर बार यही पश्चाताप कि पीड़ा आँख नम कर जाती है,
आके थपकी दे दे तू माँ,मुझे तेरी याद सताती है !
 
 
शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(०५-जनवरी -२०१४ )