Friday, July 4, 2014


प्रेम बाजार

 तुम्हारी यादें ऐसी हैं जैसे कोई तेज हवा के थपेड़ों में घबराई तितली की तरह,
मेरे मन के किसी कोने में बड़ी सिद्दत से चिपक जाती है,
पर इन दिनों मैं कुछ आने वाले दिनों को सोच के परेशान हूँ,

जब प्रेम बाजार में कुछ सामान बनके रह जायेगा,
लैला मजनू,हीर रांझा एक ब्रांड नेम बन रह जायेगा,
दौलत के मानकों में बिकेगा प्रेम,
जतनी गहरी जेब उतना लम्बा प्रेम,

विस्वास और आत्मीयता का कुछ मोल न रहेगा,
टेर्रिफ के जैसे अलग अलग वैलिडिटी पे शायद,
तब लोग प्रेम बस फेसबुक और सोशल नेटवर्क पे ही दिखाये,
हो सकता है की नज़दीक बैठी यादें धुंधली पद जाये,

लेकिन मैं फिर भी तेरी यादों में एक कविता लिखूंगा,
बस ये बतलाने के लिए कि...... 
एक कवि ने रोटी की शर्त पे प्रेम बेचने से मना कर दिया 


शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता 
(०५-जुलाई -२०१४ मध्य रात्रि )

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