Saturday, September 28, 2013

परिवर्तन से सम्रद्धि लाओ

 
 
 
लघु सोच के बृहद समाज की परिवर्तन लायेगा कौन,
कुरीतियों की CO२ में बदलाव की ओक्सीज़ऩ घोलेगा कौन,
क्यों जकड़े हैं संकीर्ण भावों में,
क्यों अन्दर का गाँधी हैं मौन ?? 
 
सब लिप्त हैं बस दोषारोपण में,
क्यों अपने दोष नहीं दिखते,
बस दिखता हैं उन्हें निजी-स्वार्थ,
हित राष्ट्र का कैसे छिप जाता...
 
है जन-समाज ब्रश्चिक जैसा,
न बढता न बढने देता,
जिस लहर में अपना स्वार्थ दिखा
उस लहर में आगे बढ लेता,
न चिंता है न कुछ चिंतन
पर करे प्रतीक्षा उनका मन,
बस जग ये हो जाये सुन्दर
उनका घर हो जाये सुन्दर,
पर बिना प्रयास क्या ये संभव
गर मौन-दर्शी बस रहेंगे सब?
 
गर सपना है सम्रद्धि का,
तो फिर प्रयास करना होगा
ये राष्ट्र सभी से बनता है
अपना कर्तव्य समझना होगा....
 
मत करो प्रतीक्षा जिम्मा लो
खुद बढ़ो औरों को बढवाओ,
तुमसे है राष्ट्र और इसके हो तुम
परिवर्तन से सम्रद्धि लाओ
 
 
 

शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
(२८ सितम्बर २०१३ )
 

माँ तेरी गोद में

 
 
 
 
बड़ी सुखद अनुभूति है माँ  तेरी गोद की ,
अद्भुत  स्वर्णिम प्रीति है माँ  तेरी गोद में,
कोई स्वार्थ नही बस ममता के बादल जहाँ उमड़ते हैं,
ममत्व की बस बारिश है,इस सुन्दर सहज परिवेश में...
 
तेरे स्पर्श मात्र से ही सब कष्ट मिट जाते हैं,
ह्रदय आह्लादित हो उठता है,अधर सहज मुस्काते हैं,
कितनी शीतल कितनी निर्मल तेरे आँचल की छाया है,
शायद ये कोई पुण्य है मेरा,जो मैंने तुमको पाया है...
 
हे मात तुझे है कोटि नमन,हैं धन्य हुआ जीवन मेरा,
सच है मैं कितना भाग्यवान,जो तेरी मुझपे छाया है,
हे ईश मुझे इस योग्य बना,खुशियाँ इस आँचल में भर पाउं,
इन आँखों में बस खुशियाँ देखूं,इन चरणों में ही मर जाउं....
 
 

                                                   शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
                                                (२८ सितम्बर २०१३ )

Saturday, September 21, 2013

अतिथि मेरे ह्रदय कुटीर के



"  तितलियों के  पंखों  जैसी  रंग  बिरंगी  दुनिया  मेरी ,
जहाँ  वास  करते  थे  सहज  ही  स्वप्न  के  अतिथि  ह्रदय  कुटीर  में ,
बचपन  की  मासूम  छवि  संग ,सदा  ढूढ़ते  हर्ष  की  लहरें ,
था  ये जग बस  सुन्दर  दिखता,  उस  कुटीर  की  हर  खिड़की  से ....
सुख -समृधि थी चहुओर बस ,रहते  थे  सब  भ्रात  भाव  से ,
राग -द्वेष  न  जाति-भेद  कुछ ,थे  आलाह्दित  हर  उत्सव  में ,
राम -रहीम  क्या  नानक -जीसस ,बसता था बस  इन्सान  दिल  में ..
साथ  मनाते ईद-दिवाली,लोहरी-क्रिसमस इस  कुटीर के लघु आँगन  में ,
जग में थी बस समता  फैली,नही विसमता का निशान था,
पुत्र जहाँ थे श्रावण के जैसे,सीता-सम नारी का मान था ....


किन्तु मन ये नहीं था अवगत जीवन के उस कटु यतार्थ से,
की जग ऐसे नहीं है चलता सहज भावों की आभिव्यक्ति से,
बचपन का सुख बस बना कल्पना ,ग्रषित हुआ जग बाल्य-श्रम से,
सुख समृद्धि बस हुई धनाड्यों की,कंटक हैं पथ में गरीब के.....
भाई को अब भाई न भाता,घर में हैं कई आँगन दिखते,
जाति-धर्म के नाम पे लड़ते रक्त पिपासु लोग हैं दिखते,
मात्र-पिता कर रहे समर्पित वृधास्रम में पुत्र आजके,
नारी का अब मान रहा न,लाज को आँचल बेवस दिखते,
पाप ,गरीबी भ्रष्ट व्यबस्था,रक्षक भी अब  भक्षक दिखते,
छिन्न-भिन्न अबशेष हैं दिखते,धुंधले से उस स्वप्न कुटीर के,


जाने कब कर गए पलायन हाय वोह अतिथि ह्रदय कुटीर के.......  "


                                   शैलेन्द्र हर्ष गुप्ता
                                 (२२-सितम्बर-२०१३ )


 

ज़रा सम्भाल के ..............

 
 
 
 
                                             
यूँ प्यार में दामन छुड़ाया नहीं करते ,
करके वादे यूँ मुकर जाया नही करते,
खुदा भी रूठ जाता है ये अदा अच्छी नही है,
जो तुम्हे चाहे उसका दिल दुखाया नही करते,
ज़रा सी बात का यहाँ बन जाता है फ़साना,
सखी को भी दिल की बात बताया नही करते,
कोई हो जाये दीवाना समझ बैठे गलत मतलब,
सबके सामने यूँ मंद मंद मुस्काया नही करते .....





 

बेचारा पति ...

 
 
 
 
 
 
          
"  सच कहूँ शादी से पहले मैं बड़ा था हैण्डसम ,
पर हुई शादी है जबसे हो गया हूँ हैंडपंप ,
हो गया हूँ हैंडपंप पत्नी का पानी भरता हूँ,
है ये आलम मौत से ज्यादा पत्नी से डरता हूँ,
जब कभी शौपिंग को मैडम मार्किट ले जाती मुझे,
समझ शौपिंग बैग कुली सा लाद देती है मुझे,
घर में नौकर बीवी का बच्चों का बनता हूँ खिलौना,
कद तो छह फुट है मेरा बीवी के आगे दीखता बौना,
सोचता था बाद शादी के उठाऊंगा मैं सुख,
क्या था पता धोबी सुबह को शाम को बनना है कुक,
देता नसीहत शादी के गद्दे में यारों मत गिरो,
वरना बन रह जाओगे आइटम कोई USE & THROUGH ......"
 
 
 
 
 

नइस टू मीट यू भैया.....

 
 
                         
 
 
                       
"  अजी ज़नाब दिखाबे पे जाएये अकल हो तो ज़रूर लड़ाइये,
जब कोई लड़की आपको देख्कर मुस्काए,
पास आके आपके धीरे से बोले हाय,
कहके हाय गर कहे यू आर वैरी हैण्डसम,
सोच लो ज़ल्दी बनाएगी वोह तुम्हे हैंडपंप,
बना तुमको हैंडपंप पैसा तेरा बह्वाएगी,
वोह बहाने डेट के रेस्तोरांत तुम्हे ले जाएगी,
मुस्कराके डट के तुमसे पेट भरके खाएगी,
पेट भरके बाद में वोह बिल प्रिये भरवाएगी,
फिर किसी थ्रेयेटर में जाकर देखेगी वोह मूवी,
तुम समझ बैठोगे की तेरे प्यार में वोह डूबी,
करके सारे ऐश तुमसे नाचेगी ताता-थैया,
जाते जाते बोल देगी NICE TO MEET YOU BHAIYA. "